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शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चिर सौभाग्य प्राप्त करने की कामना से दान का विधान किया जाता है। इस दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर, श्वेत साफ वस्त्र धारण करके किसी श्वेत वस्त्र का दान पूजनोपरांत ब्राह्मण को देना चाहिए। वस्त्र पर सामर्थ्य के अनुसार कुछ रुपये व मिष्ठान भी रखने चाहिएं तथा वस्त्र पर हल्दी का टीका भी लगा देना चाहिए। इस दान के करने से सौभाग्य की प्राप्ति तो होती ही है, वैधव्य दोष भी मिट जाता है।

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को जौ का दान करने का बड़ा माहात्म्य है। प्रातः किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर, दो मु‌ट्ठी जौ किसी श्वेत वस्त्र में बांधकर उसे दें। जौ का यह दान किसी जोशी (पड़िए) को भी दिया जा सकता है। इसी तरह ब्राह्मण के स्थान पर किसी कन्या को भी भोजन कराया जा सकता है। इस तरह का दान करते रहने से शत्रु से सदैव ही रक्षा होती है। खोया हुआ राज-वैभव भी इसके प्रभाव से पुनः प्राप्त हो जाता है।

जिस कन्या को उत्तम वर न मिल पा रहा हो, उसे चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दान का विधान करना चाहिए। वह इस दिन प्रातः नहा-धोकर और साफ धुले हुए वस्त्र पहनकर किसी मंदिर में जाकर अथवा घर के मंदिर में बैठकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करे और फिर आरती के बाद उनसे उत्तम वर की प्राप्ति के लिए याचना करे। इसके बाद पूजा में प्रयुक्त सुहाग-सामग्री और कुछ मिष्ठान किसी सुहागिन स्त्री को अपने हाथों से दान करे। इस प्रकार के तीन दानों से उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।

जो भी स्त्री या पुरुष चैत्र सुदी मध्याहनव्यापिनी चतुर्थी को मोतीचूर के लड्डुओं का दान किसी ब्राह्मण को देता है, उसके सब विघ्नों का नाश हो जाता है तथा सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गेहूं दान करने से प्यास, पित्त तथा दाह से निवृत्ति होती है। प्रातः स्नान ध्यान से निवृत्त होकर यह दान किया जाता है। दान किसी ब्राह्मण को देना ही उपयुक्त है। इस दान को कामानंद देने वाला भी माना जाता है। यदि गेहूं (एक किलो) के दान के बाद या पहले किसी मंदिर में जाकर खीर का प्रसाद बांटा जाए तो अधिक लाभ होता है।

जिन स्त्रियों के घर में सदा कलह का वातावरण बना रहता है और पति भी हमेशा जिनसे कुछ खफा खफा रहते हैं, उन्हें कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को चावलों से भरी हुई एक छोटी-सी हांड़ी तथा एक साड़ी ब्लाउज पर पांच रुपये रखकर किसी सुहागिन ब्राह्मण स्त्री को दान स्वरूप देनी चाहिए। इससे उनके घर में पुनः खुशहाली लौट आएगी।

ऐसी बाधाओं को दूर करने के लिए माघ मास की पूर्णिमा तिथि को दान का विधान किया जाता है। इस पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। स्नान पर्वो का यह अंतिम प्रतीक है। इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर विष्णु पूजन, पितृ श्राद्ध कर्म तथा भिखारियों को दान देने का विशेष फल बताया गया है। इस तिथि को गंगा स्नान करने तथा दान देने से मनुष्य की भव-बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को प्रातःकाल स्नान व पूजा आदि से निवृत्त होकर चावल, जौ और तिलों का दान करने से संतान लाभ तथा समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन स्त्रियां उपवास भी रखती हैं।

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान करने से सभी प्रकार के दुख-दारिद्र्ध दूर हो जाते हैं। इस दिन भोर काल में उठकर, स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करें और किसी विष्णु मंदिर में जाकर उनका पूजन करें। पूजन में धूप, दीप, नैवेद्य तथा नारियल आदि चढ़ाया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण को अन्न भरा घड़ा दान करें।

जिस प्रकार पुत्र अपने पिता अथवा पितामह आदि पूर्वजों के निमित्त पितृपक्ष में तर्पण करते हैं, उसी प्रकार सद्‌गृहस्थो की पुत्रवधुएं भी अपनी दिवंगता सास, माता आदि के निमित्त पितृपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक तर्पण कार्य करती हैं तथा सास अथवा माता की आत्मशांति के लिए ब्राह्मणों को इच्छित दान देती हैं। इस दान के प्रभाव से उन्हें बड़े पुण्य की प्राप्ति होती है। यदि दान के साथ ही सधवा अथवा पुत्रवती स्त्रियों को घर बुलाकर भोजन कराया जाए और कुछ दक्षिणा दी जाए तो दान का प्रभाव शीघ्र फलदायी हो जाता है।

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अन्न, वस्त्र और धन का दान ब्राह्मण को देने से ब्रह्महत्या जैसे पाप से भी मुक्ति मिल जाती है। प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। आचमन के पश्चात धूप, दीप और चंदन आदि सुगंधित पदार्थों सहित पूजा-आरती करनी चाहिए। तत्पश्चात ब्राह्मण को दान देना अपेक्षित है।

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को दान करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। इस दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु के नाम पर व्रत करने का भी विधान है। विष्णु-पूजन के पश्चात वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें धन व मिष्ठान का दान देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दान को करते रहने वाले को एक दिन पुत्ररत्न की प्राप्ति अवश्य होती है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को धन का दान करने से पाप का निवारण हो जाता है। इस दिन गंगा आदि में स्नान कर सप्तर्षियों का पूजन कर आचार्य को इच्छित अथवा सामर्थ्यानुसार धन का दान दें और ब्राह्मण को खीर-पूरी का भोजन कराएं। इस दिन किया गया दान निश्चय ही पाप का निवारण कर देता है।

किसी भी मास की अष्टमी तिथि को आरंभ करके प्रत्येक मास की अष्टमी तिथि को ब्राह्मण व ब्राह्मणियों को भोजन कराकर कोई छोटा-मोटा वस्त्र (अंगोछा आदि) और यथा सामर्थ्य धन का दान करने से रोगों की शाति हो जाती है। यदि भगवान धर्मराज की भी पूजा की जाए तो लाभ अधिक होता है।

भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को दान देने का विशेष विधान है। इस दिन चार ब्राह्मणियों को घर बुलाकर भोजन कराने एवं अन्न-वस्त्र का दान देने से धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा व्यापार व नौकरी आदि में उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को स्नानादि से निवृत्त होकर किसी प्राचीन और सिद्ध मंदिर में पूजा आदि करें। देवी-देवताओं को प्रसाद चढ़ाएं। इसके बाद मंदिर से बाहर आकर वहां जितने भी भिखारी हों. उन्हें एक-एक रुपये का दान करें। इस दान के प्रभाव और भिखारियों के आशीर्वाद से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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